आज के दौर में खुद को वक़्त देने की है जरूरत

आत्महत्या करना कोई आसान काम नहीं है आत्महत्या करने वाले इंसान का उस समय मानसिक संतुलन बहुत ही ज्यादा आक्रामक होता है कुछ दिखाई नहीं पड़ता है सिर्फ अपने जिद और जुनून के कारण वह ऐसा कदम उठा लेता है जिसके परिणाम की उसको भनक तक नहीं रहती है मौत के बाद सब कुछ खत्म है सब कुछ मतलब सब कुछ जिंदगी एक अनमोल तोहफा है परिस्थितियों से हार कर मौत को गले लगाना ठीक नहीं है यहां पर लड़ाई किसी दूसरे से नहीं अपनी लड़ाई खुद से ही है और अपने आपको खुद से ही जीतना है संघर्ष ही जीवन है बिना संघर्ष के मिली हुई वस्तुओं का कोई मोल नहीं होता है , Twitter Facebook, Instagram अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर करोड़ों फॉलो वर्ष के बीच घिरे रहने वाले लोग दरअसल अपने वास्तविक जीवन में बिल्कुल अकेले होते हैं, सोशल मीडिया के दौर में परिवार दोस्त मोहल्ले वाले रिश्तेदार सब इतनी दूर जा चुके हैं कि वापस लौटना नामुमकिन सा है मुझे नहीं पता कि सुशांत राजपूत ने यह कदम क्यों उठाया अभी जो खबरें आ रही हैं उनको लेकर कहा जा रहा है कि वह पिछले 6 महीने से डिप्रेशन में थे परेशान थे यह बेहद गंभीर विषय है हमें आपको यह जरूर ध्यान देना चाहिए कि मोबाइल के दौर में हम अपनों को कितना पीछे छोड़ के आगे आ चुके हैं ना घर वालों को समय दे पा रहे हैं ना खुद के लिए समय है हम एक अलग दुनिया में जी रहे हैं या कह सकते हैं कि हम दूसरे गोले पर आ चुके हैं अपने परिवार के लिए समय निकालें उनके लिए समय निकालें जिनको आप बहुत पीछे छोड़ कर आ गए हैं यह समय है एक दूसरे के करीब आने का अन्यथा जिस रफ्तार में यह दुनिया चल रही है एक दिन हम और आप सिर्फ अकेले रह जाएंगे ना कोई कंधा देने वाला होगा ना हाल चाल पूछने वाला जरूरत है खुद से खुद की जानकारी का आपसी मोहब्बत भाईचारे का याद करिए वह कॉलेज के दिन जब दो-दो तीन-तीन घंटे अपने दोस्तों के साथ गप्पे मारते थे एक दूसरे की टांग खींचते थे और हंसते हुए अपने घर को आ जाते थे वह समय तो लौट नहीं सकता है लेकिन वह फीलिंग अपने हृदय में जरूर जगह सकते हैं क्योंकि सारे रिश्ते हृदय से होते हैं और उसी की जरूरत है इस दौर में दिल के दरवाजे खोलिए खुल कर बोलिए

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